Wood Despatch 1854 Notes In Hindi (PDF)

Wood Despatch 1854 Notes In Hindi

(वुड का घोषणा-पत्र 1854)

आज हम आपको (Wood Despatch) के सम्पूर्ण नोट्स देने जा रहे हैं | Wood Despatch 1854 Notes In Hindi (PDF), Wood’s dispatch के नोट्स पढ़कर आप अपना कोई भी टीचिंग एग्जाम पास कर सकते हैं | तो चलिए जानते हैं इसके बारे में बिना किसी देरी के |


वुड का घोषणा-पत्र, 1854

(Woods Despatch-1854)

  • भारतीय शिक्षा के इतिहास में सन 1833 से 1853 की अवधि को शिक्षा के अंग्रेजीकरण की अवधि कहा जाता है |
  • सन 1833 के “आज्ञा पत्र/घोषणा-पत्र” ने भारत के सिंहद्वार सब देशों के मिशनरियों के लिए खोल दिए थे | अत: अंग्रेज मिशनरियों के अलावा अन्य देशों के मिशनरियों ने भी भारत में अंग्रेजी की शिक्षा के लिए मिशन स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की |
  • सन 1853 के अंत तक भारत में अंग्रेजों के माध्यम से अंग्रेजी शिक्षा का अधिपत्य स्थापित हो गया |  श्रीधरनाथ मुखोपाध्याय ने लिखा है कि –
  • “ शिक्षा छनाई (Education Filter) सिद्धांत का बोलबाला रहा, जन शिक्षा असंभव गिनी गई एवं देसी शिक्षा कुचल दी गई,  पाश्चात्य शिक्षा का आदर बड़ा, शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी हुआ |

Q: मिशनरी शब्द कहां से आया है?

A: एक मिशन से या उससे संबंधित या एक मिशन पर भेजा गया,” विशेष रूप से एक ईसाई मिशन पर” (धर्मप्रचारक) |

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background): ईस्ट इंडिया कंपनी के चार्टर को हर 20 साल में नवीनीकरण की आवश्यकता होती है और इस समय के दौरान, ब्रिटिश संसद ने भारत में शिक्षा की स्थिति को देखने और सुधारों का सुझाव देने के लिए एक चयन समिति की स्थापना की।
  • तैयारी (Preparation): ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड ऑफ कंट्रोल के अध्यक्ष सर चार्ल्स वुड ने भारत के लिए शिक्षा प्रणाली पर एक डिस्पैच तैयार किया।
  • प्रेषण (Dispatch): उन्होंने 1854 में भारत के गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी को डिस्पैच भेजा। इस दस्तावेज़ को “भारत में शिक्षा का मैग्ना कार्टा” माना जाता है और इसने भारत में शिक्षा प्रणाली की नींव रखी।
  • उत्तरदायित्व (Responsibility): ब्रिटिश सरकार भारत के लोगों को शिक्षा प्रदान करने के लिए जिम्मेदार थी।
  • निर्देश की भाषा (Language of Instruction): वुड ने प्राथमिक शिक्षा के लिए भारतीय भाषाओं के उपयोग और हाई स्कूल शिक्षा के लिए एंग्लो-वर्नाक्यूलर के उपयोग पर जोर दिया। कॉलेज स्तर की शिक्षा अंग्रेजी में होनी थी।
  • विश्वविद्यालय (Universities): लंदन विश्वविद्यालय की तर्ज पर बंबई, कलकत्ता और मद्रास जैसे प्रमुख शहरों में विश्वविद्यालयों की स्थापना की जानी थी।
  • सरकारी स्कूल (Government Schools): हर जिले में कम से कम एक सरकारी स्कूल खोला जाना था।
  • शिक्षा विभाग (Education Department): हर प्रांत में एक शिक्षा विभाग स्थापित किया जाना था।

वुड के आदेश पत्र का मूल कारण

(The root cause of Wood’s Order letter)

सन 1853 में इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी के ” आज्ञा पत्र”  के पुनरावर्तन का अवसर आया |  ब्रिटिश पार्लियामेंट ने निश्चित किया कि भारतीय शिक्षा की समस्याओं का समाधान किया जाना अनिवार्य था |  पार्लियामेंट ने एक “ जांच समिति”  की नियुक्ति की और उसे भारतीय शिक्षा के संबंध में सुझाव देने का आदेश दिया | 1854 में वुड  का घोषणा पत्र भारतीय शिक्षा के विकास के लिए प्रस्तुत किया गया |  उस समय सर “चार्ल्स वुड” कंपनी का सभापति था | अंतः  आदेश पत्र को उसी के नाम पर “वुड  का घोषणा पत्र”  कहा गया |  यह एक 100 अनुच्छेदों का लंबा लेख पत्र है |


वुड के आदेश पत्र के सुझाव व सिफारिशें

(Suggestions and recommendations of Wood’s order letter)

 वुड के घोषणा पत्र की प्रमुख विशेषताएं व सिफारिशें निम्नलिखित हैं |

1. शिक्षा का उत्तरदायित्व (Responsibility of Education)

आदेश पत्र में यह स्वीकार किया गया था कि कंपनी पर भारत में शिक्षा के लिए प्रयास करने का दायित्व है।

2. शिक्षा का उद्देश्य (Purpose of Education)

शिक्षा का उद्देश्य भारतीयों और ब्रिटिश राज्य के हितों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया गया था। घोषणापत्र में यह स्पष्ट किया गया था कि शिक्षा के माध्यम से भारतीयों की बौद्धिक और चारित्रिक उन्नति के साथ-साथ ऐसे व्यक्तियों का उत्पादन किया जाना था, जो राज्य को मजबूत बना सकें और आत्मविश्वास के साथ शाही पदों पर नियुक्त किए जा सकें।

आदेश पत्र ने भारतीयों की शिक्षा के अगर आग के 4 उद्देश्य घोषित किए –

  1.  भारतीयों में शिक्षा का प्रयास करके उनकी मानसिक और चारित्रिक उन्नति करना |
  2.  भारतीयों को पाश्चात्य ज्ञान से अवगत कराकर उनकी भौतिक समृद्धि करना |
  3. भारतीयों को राज पदों के लिए सुयोग्य बनाना |
  4. भारतीयों को अपने देश को समृद्धि साली बनाने में सहायता देना |

3. शिक्षाक्रम/पाठ्यक्रम (Curriculum/Syllabus)

भारतीय भाषाओं के साहित्य को पाठ्यक्रम/पाठ्यचर्या के लिए ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बताया गया। विधि की दृष्टि से भी इस साहित्य के महत्व को स्वीकार किया गया। इस प्रकार संस्कृत, अरबी और फारसी की उपयोगिता को स्वीकार करते हुए उन्हें पाठ्यचर्या/पाठ्यचर्या में स्थान दिया गया, परन्तु पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान का अध्ययन भारतीयों के लिए उपयुक्त माना गया। इस चार्टर में मैकाले की भाँति भारतीय भाषाओं और भारतीय ज्ञान-विज्ञान की निन्दा नहीं की गई, परन्तु यह अवश्य व्यक्त किया गया कि ‘जिस शिक्षा का हम भारत में प्रसार करना चाहते हैं, वह ऐसी शिक्षा है जिसका उद्देश्य कला, विज्ञान, दर्शन और साहित्य का प्रसार करना है। ‘संक्षेप में, यूरोपीय ज्ञान का प्रसार करने के लिए।

4. शिक्षा का माध्यम (Medium of Instruction)

घोषणा पत्र में कहा गया था कि देशी भाषाओं में पुस्तकों की कमी के कारण अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाना आवश्यक है। परन्तु यह स्पष्ट कर दिया गया कि अंग्रेजी माध्यम केवल उन्हीं व्यक्तियों के लिए होगा जिन्हें इस भाषा का समुचित ज्ञान हो और जो इसके माध्यम से पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान की शिक्षा प्राप्त कर सकें। दूसरों के लिए शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा होगी। इस प्रकार, अंग्रेजी और स्थानीय भाषाओं को शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकार किया गया। आधुनिक ज्ञान और विज्ञान की पुस्तकों का स्थानीय भाषाओं में अनुवाद किया जाए-यह इच्छा भी व्यक्त की गई। हम यूरोपीय ज्ञान के प्रसार के लिए अंग्रेजी भाषा और भारत की स्थानीय भाषाओं को शिक्षा के माध्यम के रूप में देखते हैं, और यह हमारी इच्छा है कि वे भारत के सभी स्कूलों में साथ-साथ फलते-फूलते देखें।’

5. लोक शिक्षा विभाग की स्थापना (Establishment of Public Education Department)

‘उद्घोषणा’ ने आदेश दिया कि बंगाल, मद्रास, बॉम्बे, पंजाब और उत्तर-पश्चिम प्रांतों के प्रत्येक भारतीय प्रांतों में एक ‘सार्वजनिक निर्देश विभाग’ स्थापित किया जाएगा और इसका सर्वोच्च अधिकार ‘सार्वजनिक शिक्षा’ होगा। एक ‘निदेशक’/निर्देशक होना चाहिए। उसकी सहायता के लिए उप शिक्षा निदेशक, निरीक्षक और सहायक निरीक्षक की नियुक्ति की जाए। प्रांत की शिक्षा और उसके संचालन का ध्येय शिक्षा निदेशक (निदेशक) पर होगा और वह हर साल शिक्षा से संबंधित रिपोर्ट भेजेगा।

6. विश्वविद्यालयों की स्थापना (Establishment of Universities)

‘घोषणापत्र’ में कहा गया था कि उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए कलकत्ता, बंबई और यदि आवश्यक हो तो मद्रास और अन्य स्थानों पर विश्वविद्यालयों की स्थापना की जानी चाहिए। इन यूनिवर्सिटी को लंदन यूनिवर्सिटी को मॉडल मानकर बनाया गया था। प्रत्येक विश्वविद्यालय के लिए एक कुलाधिपति, कुलपति और अध्येता होंगे, जिन्हें सरकार द्वारा नामित किया जाएगा। विश्वविद्यालयों में इंजीनियरिंग, कानून, देशी भाषाओं, संस्कृत, अरबी और फारसी की शिक्षा की व्यवस्था करने का विशेष उल्लेख किया गया। इस प्रकार ‘घोषणापत्र’ में प्राच्य भाषाओं के विकास पर यथोचित ध्यान दिया गया, परन्तु अंग्रेजी शिक्षा की माँग के कारण उनकी अपेक्षित प्रगति नहीं हो सकी।

7. क्रमबद्ध विद्यालयों की स्थापना (Establishment of Graded Schools)

‘घोषणा-पत्र’ में पूरे भारत में ग्रेडेड स्कूलों की योजना पर जोर दिया गया था। इस योजना की व्याख्या करते हुए ‘मेनिफेस्टो’ में यह उल्लेख किया गया था कि – शिक्षा का ढाँचा ऐसा होना चाहिए जिसके आधार पर प्राथमिक विद्यालय हों और फिर मध्य विद्यालय, उच्च विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय हों।

  • Primary schools ➡ Middle schools ➡ High schools ➡Colleges ➡ Universities
  • प्राथमिक विद्यालय ➡ मध्य विद्यालय ➡ उच्च विद्यालय ➡ कॉलेज ➡ विश्वविद्यालय

8. जन शिक्षा का विस्तार (Expansion of Mass Education)

निस्यन्दन-सिद्धांत के पालन के लिए ‘घोषणापत्र’ में असंतोष व्यक्त किया गया था और यह स्वीकार किया गया था कि आम आदमी की शिक्षा की पूरी तरह से उपेक्षा की गई थी। अभी तक कंपनी के अधिकारियों का ध्यान एक वर्ग विशेष की शिक्षा की ओर था और राजकोष का अधिकांश भाग इसी पर खर्च होता था। अतः ‘घोषणा पत्र’ में कहा गया कि आम जनता को व्यावहारिक एवं लाभकारी शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की जाये। सरकार को प्राथमिक शिक्षा पर अधिक पैसा खर्च करना चाहिए, प्रत्येक जिले में स्कूल स्थापित करना चाहिए, स्वदेशी स्कूलों में सुधार करना चाहिए और गरीब छात्रों के लिए छात्रवृत्ति की स्थापना करनी चाहिए।

9. सहायता अनुदान (Grant in Aid)

विधि-सार्वजनिक शिक्षा-प्रसार की योजना उत्कृष्ट थी, लेकिन इसे लागू करने के लिए कंपनी को बहुत पैसा खर्च करना पड़ा। इसलिए, ‘मेनिफेस्टो’ में ग्रांट-इन-एड का सुझाव दिया गया था। इस पद्धति से परिचित होने के कारण भारतीयों को इसे स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं थी। इसे शिक्षित और धनी वर्गों की उदारता और प्रयासों से प्रोत्साहित किया जा सकता था, और शिक्षा की तीव्र प्रगति भी संभव थी। प्रत्येक प्रांतीय सरकार को अनुदान सहायता के संबंध में कुछ नियम बनाने चाहिए और सहायता अनुदान केवल उन्हीं शिक्षण संस्थानों को दिया जाना चाहिए जो निम्नलिखित शर्तों को स्वीकार करते हैं |

  1. स्कूल में बिना किसी भेदभाव के अच्छी और धर्मनिरपेक्ष धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रदान करना।
  2. स्थानीय लोगों की प्रबंधन समिति द्वारा विद्यालय को कुशलतापूर्वक संचालित किया जाना चाहिए।
  3. स्कूल के छात्रों से फीस के रूप में कुछ पैसे लेना।
  4. स्कूल प्रबंधकों द्वारा पालन किए जाने वाले सरकारी निरीक्षण और सहायता अनुदान नियम।

‘उद्घोषणा’ में यह उल्लेख किया गया था कि प्रान्तीय सरकारें इंग्लैण्ड की अनुदान-सहायता प्रणाली का पालन करें तथा शिक्षकों के वेतन, छात्रवृत्ति, पुस्तकालय, वाचनालय, प्रयोगशाला, विज्ञान एवं कला वर्ग तथा भवन निर्माण आदि के लिए अलग से अनुदान की व्यवस्था करें। हवाले करना। सभी प्रकार के विद्यालयों को अनुदान दिया जाए। इस अनुदान प्रणाली को अपनाने से निजी विद्यालयों की संख्या में वृद्धि होगी और कुछ समय बाद उनकी संख्या इतनी हो जायेगी कि सरकार विद्यालयों के संचालन के व्यय से मुक्त हो जायेगी।

10. अध्यापकों का प्रशिक्षण (Teacher Training)

वुड के ‘घोषणा-पत्र’ के माध्यम से कंपनी के निदेशकों ने यह इच्छा व्यक्त की कि इंग्लैंड के मॉडल पर भारत के प्रत्येक प्रांत में प्रशिक्षण विद्यालयों की स्थापना शीघ्र की जानी चाहिए। चिकित्सा, इंजीनियरिंग और कानून आदि में प्रशिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए। निदेशकों ने यह भी आशा व्यक्त की कि छात्र शिक्षकों को छात्रवृत्ति और शिक्षकों को उच्च वेतन देकर शिक्षा विभाग को अन्य सरकारी विभागों की तरह आकर्षक बनाया जाए।

11. व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education)

‘घोषणापत्र’ में (Vocational Education) व्यावसायिक शिक्षा की ओर संकेत करते हुए लिखा गया था कि ऐसे महाविद्यालय एवं विद्यालय बनाए जाएँ जिनमें भारतीय विभिन्न व्यवसायों की शिक्षा प्राप्त कर सकें। व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देने में संचालकों के दो उद्देश्य थे-

  • इस शिक्षा को प्राप्त करने से बेकार व्यक्ति (निकम्मे) लोग काम में लगेंगे और सरकार के प्रति कृतज्ञ रहेंगे।
  • व्यावसायिक विद्यालयों की स्थापना से भारतीयों का हित भी संभव होगा और सरकार को भी निष्ठावान लोग मिलेंगे।

12. स्त्री शिक्षा (Woman Education)

‘उद्घोषणा’ में नारी शिक्षा के लिए धन देने वालों की प्रशंसा की गई और यह आदेश दिया गया कि उदार नीति अपनाकर उन्हें इस परम पुनीत कार्य की और प्रेरणा दी जाए। यह भी कहा गया कि स्कूल को महिला शिक्षा के लिए अनुदान राशि दी जाए।

13. मुसलमानों की शिक्षा (Education of Muslims)

घोषणापत्र में कहा गया था कि मुसलमान शिक्षा के क्षेत्र में बहुत पिछड़े हुए हैं, इसलिए उन्हें शिक्षा देने के लिए विशेष प्रयास और व्यवस्था की जानी चाहिए।

14. प्राच्य साहित्य को प्रोत्साहन (Promotion of oriental Literature)

‘घोषणापत्र’ में प्राच्य साहित्य को प्रोत्साहित करने की सिफारिश की गई थी। यह सुझाव दिया गया कि पश्चिमी साहित्य और विज्ञान की पुस्तकों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त देशी भाषाओं में पुस्तकें लिखी जानी चाहिए तथा लेखकों को आकर्षक पुरस्कार दिए जाने चाहिए।

15. शिक्षा और रोजगार (Education and Employment)

  • ‘घोषणापत्र’ में शिक्षित व्यक्तियों को सरकारी नौकरी देने का आदेश दिया गया था। यह स्पष्ट किया गया कि नियुक्तियां करते समय व्यक्तियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाए तथा उन व्यक्तियों को प्राथमिकता दी जाए जिनकी शैक्षिक योग्यता अन्य व्यक्तियों से अधिक हो। इस नीति को अपनाने से न केवल शिक्षा का प्रसार होगा अपितु शिक्षा प्राप्त करने से जनता में मानवीय गुणों का विकास होगा जिसके फलस्वरूप उनका जीवन अधिक सफल होगा।
  • इस प्रकार वुड के घोषणापत्र में यूरोपीय ज्ञान का प्रसार, शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी और देशी भाषाओं, लोक-शिक्षा-विभाग, विश्वविद्यालयों और ग्रेडेड स्कूलों की स्थापना, जन-शिक्षा-प्रसार, सहायता-अनुदान, शिक्षकों का प्रशिक्षण, महिला और व्यावसायिक शिक्षा, प्राच्य साहित्य को बढ़ावा देने और शिक्षित व्यक्तियों को सरकारी नौकरी देने की सिफारिश की गई।
  • उपरोक्त अनुशंसाओं से स्पष्ट है कि ‘वुड्स मैनिफेस्टो’ का भारतीय शिक्षा में महत्वपूर्ण स्थान है। यह पहला घोषणापत्र था जिसने ब्रिटिश शिक्षा के लिए प्रारंभिक रूपरेखा प्रदान की। वुड के घोषणापत्र के संबंध में एएन बसु ने लिखा है, “वुड का घोषणापत्र भारतीय शिक्षा की आधारशिला था।”

वुड के घोषणा पत्र, 1854 का मूल्यांकन गुण-दोष

(Evaluation of the Merits and Demerits of Wood’s Despatch, 1854)

वुड घोषणा-पत्र’का मूल्यांकन (Evaluation of Wood Despatch) घोषणा-पत्र यद्यपि उच्च कोटि के विद्वानों के गहन अध्ययन और परिश्रम का फल था, पर वह न तो गुणों का कोष था और न अवगुणों की खान था।वह सर्वगुण-सम्पन्न और दोषरहित न था और यह आशा भी उन विद्वानों से करना उचित न थी, क्योंकि उनके संस्कार भारतीय न थे। फिर भी इन विद्वानों ने घोषणा-पत्र के रूप में एक महत्त्वपूर्ण उपहार भारतीय शिक्षा-जगत को दिया।

अतः इसके गुण-दोषों का सूक्ष्म विवेचन आवश्यक हो जाता है |

Wood-Despatch-1854-Notes-In-Hindi
Wood-Despatch-1854-Notes-In-Hindi

वुड घोषणा पत्र के गुण

(Merits of Wood’s Despatch)

वुड्स डिस्पैच, जिसे “भारत में अंग्रेजी शिक्षा के मैग्ना कार्टा” के रूप में भी जाना जाता है, में कई महत्वपूर्ण गुण थे:

  1. वुड्स डिस्पैच (वुड घोषणा पत्र) ने अपने इतिहास में एक नए युग की शुरुआत करके भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाया।
  2. भारतीय शिक्षा की नीति को कानूनी रूप से डिस्पैच के माध्यम से परिभाषित और निर्धारित किया गया था।
  3. इस घोषणा के माध्यम से सरकार को शिक्षा के लिए पूर्ण रूप से उत्तरदायी बनाया गया।
  4. पूरी शिक्षा प्रणाली का मूल्यांकन किया गया और सभी मुद्दों को संबोधित किया गया।
  5. शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए व्यवस्थित विद्यालयों की स्थापना की गई, इसे और अधिक संगठित किया गया।
  6. भारतीय साहित्य, संस्कृति और ज्ञान को महत्वपूर्ण माना गया और प्राच्य साहित्य को बढ़ावा दिया गया।
  7. प्रत्येक प्रांत में शिक्षा निदेशकों, उप निदेशकों, निरीक्षकों की नियुक्ति और शिक्षा विभागों की स्थापना के साथ एक उचित प्रशासनिक संरचना स्थापित की गई।
  8. “निस्पंदन सिद्धांत” (Filtration Theory) को समाप्त कर दिया गया, जिससे शिक्षा आम जनता के लिए सुलभ हो गई और न केवल उच्च वर्गों तक सीमित हो गई।
  9. प्राचीन शिक्षण संस्थानों को पुनर्जीवित किया गया और उन्हें मजबूत करने के प्रयास किए गए।
  10. घोषणापत्र के आधार पर, कलकत्ता, बंबई और मद्रास में विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई और अधिक उच्च और माध्यमिक विद्यालयों को खोलकर शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाया गया।
  11. भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं, संस्कृत, अरबी और फ़ारसी को उचित सम्मान और मान्यता दी गई और इन भाषाओं के प्रति एक उदार दृष्टिकोण अपनाया गया।
  12. आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के योग्य और मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की गई, ताकि वे शिक्षा प्राप्त कर सकें।
  13. शिक्षकों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए उनके वेतन में वृद्धि की गई, जिससे शिक्षा के क्षेत्र में अधिक योग्य व्यक्ति आकर्षित हुए।
  14. शिक्षा के लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराई गई और बड़ी संख्या में विद्यालय लाभान्वित हुए। इसने शिक्षा में निजी पहल को प्रोत्साहित किया, जिससे शिक्षा का तेजी से प्रसार हुआ।
  15. उच्च वेतन वाली राज्य की नौकरियों में शिक्षित व्यक्तियों को दी गई वरीयता ने शिक्षा में जनता की रुचि को बढ़ाया।
  16. प्रत्येक प्रांत में प्रशिक्षण स्कूलों की स्थापना के माध्यम से शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया।
  17. महिलाओं की शिक्षा, जिसे पहले उपेक्षित किया गया था, को प्रेषण के माध्यम से जीवन का एक नया पट्टा दिया गया और पुन: शिक्षा को प्रोत्साहित किया गया।
  18. व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की गई, जिससे बेरोजगारी की समस्या को दूर करने और भारतीय जनता को आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिली।
  19. लॉर्ड डलहौजी ने भारतीय शिक्षा के इतिहास में एक दूरदर्शी और साहसिक प्रयास के रूप में वुड्स डिस्पैच की प्रशंसा की।

वुड-घोषणा-पत्र के अवगुण

(Demerits of Wood’s Despatch)

वुड का घोषणा-पत्र जहाँ एक ओर भारतीय शिक्षा व्यवस्था के लिए वरदान सिद्ध हुआ, वहीं दूसरी ओर इसमें अनेक दोष भी सामने आए जिससे भारतीय शिक्षा को हानि पहुँची। इसलिए घोषणापत्र की प्रमुख खामियों की समीक्षा भी जरूरी है।

  1. घोषणापत्र में यद्यपि सैद्धान्तिक (Theoretical) रूप से शिक्षा को व्यापक दृष्टिकोण दिया गया है, परन्तु व्यवहारिक रूप से इसका उद्देश्य केवल जीविकोपार्जन ही रहा है।
  2. वुड का घोषणापत्र पक्षपातपूर्ण शैक्षिक नीति पर आधारित था।
  3. इस घोषणापत्र में नैतिक और धार्मिक शिक्षा को समाप्त कर दिया गया, जिससे भारतीय संस्कृति को ठेस पहुंची और संपूर्ण भारतीय शिक्षा व्यवस्था का ढांचा हिल गया।
  4. शिक्षा परीक्षा प्रधान हो गई है अर्थात परीक्षा का स्थान सर्वोपरि होना चाहिए।
  5. वुड के घोषणापत्र में भारत के साहित्य को तिरस्कार की दृष्टि से देखा गया।
  6. माध्यम के रूप में अंग्रेजी भाषा को अत्यधिक महत्व दिया गया। फलस्वरूप प्राचीन और भारतीय भाषाओं का महत्व नगण्य हो गया, जिससे पाश्चात्य सभ्यता का प्रचार-प्रसार मजबूत हुआ और प्राच्य साहित्य का महत्व घट गया।
  7. अंग्रेजी शिक्षा को केवल नौकरी पाने का साधन (शिक्षा का मुख्य उद्देश्य) बना दिया।
  8. घोषणापत्र के अनुसार प्रांतों में शिक्षा विभागों की स्थापना के कारण शिक्षा पर सरकारी नियंत्रण कड़ा हो गया था। शिक्षा एक यांत्रिक प्रक्रिया की तरह हो गई। उनके लचीलेपन और मुक्त गति में काफी कमी आई थी।
  9. धार्मिक शिक्षा की उपेक्षा के कारण भारतीय अध्यात्मवाद का विकास रुक गया और वह तीव्र गति से अंधकार के गर्त की ओर अग्रसर हुआ।
  10. व्यावसायिक शिक्षा व्यावहारिक रूप से नगण्य रही। उनका मकसद नौकरी पाना था न कि भारतीयों को आत्मनिर्भर (Self-reliance) बनाना।
  11. विश्वविद्यालयों की प्रकृति भारतीय नहीं बल्कि अंग्रेजी थी। सरकार द्वारा सीनेट के सदस्यों के नामांकन के परिणामस्वरूप, उच्च शिक्षा पूरी तरह से सरकार द्वारा नियंत्रित थी।
  12. पत्रक में प्राच्य साहित्य और संस्कृति के लिए मैकाले की भाषा का प्रयोग नहीं किया गया था, लेकिन भाव में बहुत अंतर नहीं था। पत्रक के अनुसार शिक्षा का मूल उद्देश्य पाश्चात्य ज्ञान का प्रसार करना था।
  13. हालाँकि घोषणापत्र में शिक्षा को सांप्रदायिक भावनाओं से ऊपर रखने की सिफारिश की गई थी, लेकिन समिति ने ईसाई शिक्षा के प्रति नरम भावना प्रदर्शित की। अर्थात् इस शिक्षा के प्रति तटस्थ नहीं रहना।
  14. इस घोषणापत्र के अनुसार शिक्षा का बजट अंग्रेजी शिक्षा पर खर्च किया गया, जिससे अंग्रेजी शिक्षा का अधिक प्रसार हुआ और अंग्रेजी स्कूलों की मांग दिन-ब-दिन बढ़ती गई।
  15. वुड का घोषणापत्र अब तक भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त असंतुलन को दूर नहीं कर सका। अनुदान उन्हीं को दिया जाता था जो स्वयं 50% व्यय (Expense) की व्यवस्था करते थे।
  16. शिक्षा ज्ञान के लिए नहीं थी, बल्कि परीक्षा पास करने के बाद नौकरी पाने का माध्यम बन गई।
  17. शिक्षा का ढांचा पूरी तरह विदेशी रहा।
  18. अंग्रेजी माध्यम होने के कारण छात्र विषय वस्तु को बिना समझे ही रट लेते हैं।

आशा है आपको यह नोट्स पसंद आए होंगे यदि आपके मन में किसी भी प्रकार का कोई प्रश्न है तो आप हमसे कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं | हम आपको तुरंत उत्तर देने का प्रयास करेंगे | धन्यवाद |

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