सौर सेल क्या होता है ? सोलर सेल कैसे काम करता है?

सौर सेल क्या होता है ? सोलर सेल कैसे काम करता है?

आज के इस आर्टिकल में हम आपको सोलर सेल , सौर सेल के बारे में बताने जा रहे है| की सौर सेल क्या होता है ? सोलर सेल कैसे काम करता है? साथ ही हम आपको इससे जुडी बहुत सी महत्वपूर्ण बाते आपके साथ साझा करेंगे जिससे आपके लगभग सौर सेल्स से जुड़े बहुत से प्रश्नो के उत्तर आपको मिल जाएंगे | तो चलिए जानते है सौर सेल के बारे में |

सोलर-सेल-कैसे-काम-करता-है
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पिछले दो दशकों में पूरे विश्व की ऊर्जा आपूर्ति में सौर ऊर्जा का योगदान काफी बढ़ गया है इस आर्टिकल में दिखाया जाएगा कि सोलर सेल का फोटो वॉल्टिक सेल बिजली कैसे पैदा करते हैं धरती पर सूरज की ऊर्जा सबसे प्रचुर मात्रा में और बिल्कुल मुफ्त उपलब्ध होने वाली ऊर्जा है इस ऊर्जा का उपयोग करने के लिए हमें धरती पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने वाले एक और तत्व की मदद लेनी पड़ती है “बालू”

बालू का सोलर सेल

बालू का सोलर सेल में प्रयोग करने के लिए उसे 99.99% शुद्ध सिलीकान क्रिस्टलो में बदलना पड़ता है ऐसा करने के लिए जैसा कि यहां दिखाया गया है बालू को एक जटिल शुद्धिकरण क्वालीफिकेशन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है | प्राकृतिक सिलिकॉन को गैस की सिलिकॉन की जो कि ग्रुप में बदला जाता है फिर उच्च शुद्धता वाले पॉलीक्रिस्टलाइन सिलीकान प्राप्त करने के लिए इसे हाइड्रोजन के साथ मिलाया जाता है सिलिकॉन के इन टुकड़ों को फिर से आकार दिया जाता है और बहुत ही पतली पट्टी को प्लेट के रूप / हिस्सों में बदल दिया जाता है | जिसे सिलिकॉन पेपर्स कहते हैं |

सिलीकान वेफर

सोलर-सेल-कैसे-काम-करता-है
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सिलीकान वेफर फोटोवॉल्टिक सेल के हृदय की तरह होता है | जब हम सिलिकॉन के अणुओं का विश्लेषण करते हैं तो आप देख सकते हैं कि वे आपस में जुड़े हुए होते हैं जब आप किसी के साथ जुड़ जाते हैं तो अपनी आजादी को देते हैं उसी तरह सिलिकॉन की संरचना में इलेक्ट्रॉन सभी गति करने के लिए स्वतंत्र नहीं होते इस अध्ययन को आसान बनाने के लिए आइए सिलिकॉन किलो की 2D संरचना पर विचार करते हैं |

मान लेते हैं कि 5 संयोजक वाले फास्फोरस अणुओं को इसमें इंजेक्ट किया गया है यहां एक इलेक्ट्रॉन गति करने के लिए स्वतंत्र है इस संरचना में जब इलेक्ट्रॉन से पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त कर लेते हैं तो वह मुक्त रूप से गति कर सकते हैं

तो चलिए इस प्रकार की सामग्री का उपयोग करके एक बहुत ही आसान सोलर सेल बनाने की कोशिश करते हैं

जब इस पर प्रकाश पड़ेगा तो इलेक्ट्रॉन स्कोर फोटोन ऊर्जा मिल जाएगी और बैग गति के लिए स्वतंत्र हो जाएंगे  लेकिन इलेक्ट्रॉन की यह गति अव्यवस्थित होती है यह लोड के माध्यम से किसी करंट में परिवर्तित नहीं होती है इलेक्ट्रॉन की एक समान दिशा में गति के लिए एक ड्राइविंग फोर्स की जरूरत होती है ड्राइविंग फोर्स पैदा करने का एक आसान और व्यावहारिक तरीका पीएन जंक्शन है

पीएन जंक्शन ड्राइविंग फोर्स कैसे पैदा करता है?

सोलर-सेल-कैसे-काम-करता-है
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एन टाइप डोपिंग की तरह ही अगर आप शुद्ध सेलिकॉन में बोरान के तीन संयोजक वाले इलेक्ट्रॉन इंजेक्ट करेंगे तो हर अनु में ए क्षेत्र हो जाएगा इसे पी टाइप डोपिंग कहते हैं | अगर इन दोनों तरह की मिश्रित सामग्रियों को एक साथ जोड़ते हैं तो एन की ओर से कुछ इलेक्ट्रॉन पी क्षेत्र में चले जाएंगे | और वहां पर उपलब्ध छेदो को भर देंगे इस तरह एक डिप्लीशन रीजन यह रिक्ति क्षेत्र बन जाएगा | जहां पर कोई भी मुक्त इलेक्ट्रॉन या छेद नहीं होंगे इलेक्ट्रॉन के जगह बदलने के कारण एन की ओर की सीमा पर थोड़ा सकारात्मक आवेश का क्षेत्र बन जाता है | और पी की और नकारात्मक आवेश का क्षेत्र बन जाता है | इन आवेशों के बीच निश्चित रूप से एक विद्युतीय क्षेत्र बन जाएगा यह द्वितीय क्षेत्र आवश्यक ड्राइविंग पोस्ट पैदा करता है

विस्तार से

सोलर-सेल-कैसे-काम-करता-है
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जब पी एन जंक्शन पर प्रकाश पड़ता है तो कुछ बड़ा ही रोचक घटित होता है प्रकाश पी वी सेल के क्षेत्र पर पड़ता है | और यह भीतर जाकर डिप्लीशन रीजन पर पहुंच जाता है डिप्लीशन रीजन में इलेक्ट्रॉन और छेदो के जोड़े बनाने के लिए फोटो ऊर्जा पर्याप्त होती है | डिप्लीशन रीजन में मौजूद विद्युतीय क्षेत्र इलेक्ट्रॉन और छिद्रों को डिप्लीशन रीजन के बाहर भेजता है हम यहां देखते हैं कि एन क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन और पी क्षेत्र में छिद्रो की सघनता इतनी अधिक हो जाती है कि उनके बीच काफी अंतर पैदा हो जाता है जैसे ही हम इन चित्रों के बीच कोई लोड जोड़ेंगे इलेक्ट्रॉन स्लॉट के माध्यम से प्रवाहित होने लगेंगे इलेक्ट्रॉन अपना परिपथ पूरा करने के बाद फिर से पी क्षेत्र के क्षेत्रों से जुड़ जाएंगे

इस तरह सोलर सेल लगातार डायरेक्ट करंट प्रदान करती है एक विशेष सोलर सेल में आप देख सकते हैं कि ऊपरी एंड पर बहुत ही पतली होती है और भारी मात्रा में डोप की हुई होती है | सेल के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए ऐसा किया जाता है

यहां डिप्लीशन रीजन की रचना

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आप गौर करेंगे कि यहां डिप्लीशन रीजन की मोटाई पिछली स्थिति की तुलना में काफी अधिक है इसका मतलब है कि प्रकाश पड़ने के कारण इलेक्ट्रॉन और छिद्र के जोड़े पिछली स्थिति की तुलना में अधिक व्यापक क्षेत्र में बने हैं

परिणाम स्वरूप इसके द्वारा अधिक करंट पैदा किया जाता है ऊपरी परत के पतले होने का एक और फायदा यह है कि प्रकाश की ऊर्जा अधिक मात्रा में डिप्लीशन रीजन तक पहुंच पाती है

सोलर पैनल की संरचना का विश्लेषण

 

आप देख सकते हैं कि सोलर पैनल में अलग-अलग परते हैं उनमें से एक सेलो से युक्त परत है आपको यह देखकर आश्चर्य होगा कि इन पीवी सेल्स को आपस में कैसे जोड़ा जाता है? फिंगर से होकर गुजरने के बाद इलेक्ट्रॉन से बस बार्स में इकट्ठे हो जाते हैं | इस सेल की ऊपरी नकारात्मक सताए अगली सेल की उल्टी सताए से तांबे की पट्टियां द्वारा जुड़ी होती है इससे यहां सीरीज कनेक्शन बनता है जब आप इन सीरीज में जुड़ी हुई सेल्स को दूसरी सेल सीरीज के समांतर जोड़ते हैं तो सोलर पैनल बन जाता है|

एक अकेली पीवी सेल करीब 0.5 वोल्टेज पैदा करती है सीरीज कांबिनेशन और सेल्स का समांतर कनेक्शन करंट और वोल्टेज की मात्रा को उपयोगी सीमा तक बढ़ा देता है सेल के दोनों तरफ ईवीएम चादर की परत सेल को निम्नलिखित चीज़ो से बचाती है|

  • झटको
  • कम्पन
  • नमी
  • धूल
  • पानी
सोलर-सेल-कैसे-काम-करता-है
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दो अलग अलग तरीके के देखने वाले सोलर पैनल क्यों होते हैं?

ऐसा आंतरिक क्रिस्टल जाली की संरचना के कारण होता है | पॉलीक्रिस्टलाइन सोलर पैनल में कई क्रिस्टल रेंडम तरीके से लगाए गए होते हैं अगर सिलिकॉन क्रिस्टल की रासायनिक प्रक्रिया को एक कदम आगे बढ़ाया जाए| तो पौली क्रिस्टलइन सेल मोनो क्रिस्टलइन सेल बन जाएगी | हालांकि दोनों के संचालन का सिद्धांत एक ही है पर मोनोक्रिस्टलाइन सेल्स उच्च विद्युत चालकता देती है मोनोक्रिस्टलाइन सेल में अनूठा अष्टकोण आकार बिना कोई बर्बादी किए अधिक प्रभावी तरीके से सेल के क्षेत्र का उपयोग करता है| लेकिन मोनोक्रिस्टलाइन सैलो की लागत अधिक होती है और इसलिए इनका प्रयोग अधिक व्यापक रूप से नहीं किया जाता है |

पीवी सेल

पीवी सेल की लागत बहुत कम होते हुए भी कुल वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति में सोलर फोटोवॉल्टिक का योगदान केवल 1.3% ही है इसका मुख्य कारण इसकी पूंजी लागत और सोलर फोटोवॉल्टिक की कार्य क्षमता सीमित होना है  जो परंपरागत ऊर्जा विकल्पों से मेल नहीं खाती है घरों की छतों पर लगे सोलर पैनल ओं की बैटरी की मदद से उर्जा संग्रहित करने का विकल्प होता है और सोलर चार्ज के लिए नियंत्रक लगे होते हैं लेकिन सोलर बिजली संयंत्र के लिए आवश्यक भारी संग्रहण क्षमता बनाना संभव नहीं है इसलिए सामान्य तौर पर भी इलेक्ट्रिक ग्रिड प्रणाली से जुड़े होते हैं उसी तरह जैसे परंपरागत विद्युत संयंत्र के आउटपुट जुड़े होते हैं पावर इनवर्टर की मदद से डीसी करंट को एसी में बदला जाता है | और ग्रिड को भेज दिया जाता है |

FAQ

Q : सोलर पैनल बनाने की विधि pdf

Ans : सोलर पैनल बनाने की विधि आपको यूट्यूब पर मिल जाएगी और इस आर्टिकल को पढ़के आपके सोलर सेल से जुड़े लगभग सभी प्रश्नो के उत्तर मिल जाएंग | 

Q: सोलर कैसे बनता है

Ans : बालू और कार्बन को 2000 डिग्री सेल्सियस पर ले जाने के बाद सोलर बनता है | ( बालू का सोलर सेल में प्रयोग करने के लिए उसे 99.99% शुद्ध सिलीकान क्रिस्टलो में बदलना पड़ता है )

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