न्यूक्लियर बैटरी से बिजली परमाणु बैटरी से ऊर्जा
आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताने जा रहे है परमाणु बैटरी के बारे में , न्यूक्लियर बैटरी से बिजली, परमाणु बैटरी से ऊर्जा आदि के बारे में , आज हम जिस टेक्नोलॉजी की बात करेंगे वह कोई हवा हवाई बात नहीं है क्योंकि आप को ऐसा लग सकता है कि मैं लंबी-लंबी फेंक रहा हूं पर यह सब रियल है एक बैटरी जिसकी लाइफ हंड्रेड ईयर्स है और इसका मतलब यह नहीं है कि यह हंड्रेड इयर्स तक खराब नहीं होगी इस हंड्रेड इयर्स का मतलब है एक बार चार्ज करने के बाद में यह बैटरी हंड्रेड इयर्स तक चलेगी और एक कैलिफ़ोर्निया बेस्ट कंपनी है जिसका नाम है एनडीबी उसने ऐसी बैटरी बनाई है कि उसकी लाइफ 28 हज़ार साल तक है | यानी इस बैटरी को पूरा डिस्चार्ज करने के लिए हमें इस अर्थ पर चार सौ बार जन्म लेना होगा बताओ तो इस आर्टिकल में हम यही जानेंगे कि यह जो बैटरी है सबसे पहले तो यह अपने पास में कब तक पहुंच जाएगी और इसके साथ में क्या क्या प्रॉब्लम है और यह कैसे काम करती है और यार ऐसा पॉसिबल कैसे है तो यह सब पूरा कवर करेंगे इस आर्टिकल में तो बस ध्यान से पढ़ते रहो |
परमाणु बैटरी
तो यह जो बैटरी है इसका नाम है न्यू क्लियर बैटरी सबसे पहले मैं आपके बेसिक फंडामेंटल क्लियर कर देता हूं यह जो रेडियोएक्टिव एलिमेंट होते हैं उनमें होता यह है कि उनकी एनर्जी तो निकल जाती है लेकिन उसके बाद में इनकी रेडियो एक्टिविटी का इफेक्ट कई हजार सालों तक हमारी अर्थ पर रहता है जैसे जापान में हिरोशिमा और नागासाकी पर जो नौकरी और बम गिराए थे तो वहां पर आज भी रेडियो एक्टिविटी का इफेक्ट है तू यह जो रेडियोएक्टिव रेज़ है इसको हम एक एनर्जी मान कर चलते हैं | इस न्यूक्लियर बैटरी में तो इस बैटरी में होता यह है कि हमें एक रेडियो एक्टिव एलिमेंट चाहिए
उद्धरण: स्ट्रोंटियम – 90
रेडियोएक्टिव एलिमेंट
इस रेडियोएक्टिव एलिमेंट को इस बैटरी में एक साइड में रखा जाता है और दूसरी साइड में रखा जाता है कोई भी सेमीकंडक्टर जैसे सिलिकॉन हो गया जब इस रेडियो एक्टिव एलिमेंट का डीके होता है तो इसे बीटरीज निकलती है और इनबिल्ट आरएस के पास में इलेक्ट्रॉन होता है और यह बेटा रेस सेमीकंडक्टर से टकराती है और यह सेमीकंडक्टर इन रेडियो एक्टिव किरणों को इलेक्ट्रिसिटी में बदल देता है| बस यही सिंपल सी कहानी है इसकी और इसी कहानी को बोलते हैं बेटा वोल्टिक कंसेप्ट सेम उसी तरीके से जैसे हमारे सन से हमें जो रोज मिलती है उनको सोलर पैनल इलेक्ट्रिक एनर्जी में बदल देते हैं | लेकिन अभी यह जो बेटा रेज है यह हमारे लिए वैसे खतरनाक है क्योंकि यह हमारी बॉडी के कांटेक्ट में आ गई तो बॉडी के सेल्स को डैमेज कर सकती है इसलिए इस बैटरी के चारों तरफ एलुमिनियम की कोटिंग कर दी जाती है | क्योंकि यह बीटा रेस एलुमिनियम को क्रॉस नहीं कर सकती है तो ऐसा कहा जा सकता है कि यह बैटरी हमारे लिए सेव है इसे हमें कोई भी नुकसान नहीं है |
अब हमें ऐसे रेडियो एक्टिव एलिमेंट चाहिए जिनके पास में बीटा किरण होती है | क्योंकि बेटा रेज में इलेक्ट्रॉन होते हैं जो इलेक्ट्रिसिटी में बदल जाते हैं जैसे-
- निकेल 63
- स्ट्रोंटियम 90
- प्लूटोनियम 238
- न्यूक्लियर पावर प्लांट का वेस्ट
और इसके अलावा सबसे ज्यादा रेडियोएक्टिव एलिमेंट जो न्यूक्लियर पावर प्लांट है उसका जो वेस्ट है वह है |
पेसमेकर
यह कोई वैसे नई टेक्नोलॉजी नहीं है पर इतने दिन हमारे पास में इस टेक्नोलॉजी को डिवेलप करने का सही तरीका नहीं था जैसे पुराने टाइम में जो कंपनी पेसमेकर बनाती थी वह इस न्यू क्लियर बैटरी को काम में लेती थी वैसे पेसमेकर होता है जब किसी पर्सन का हर्ट कमजोर हो जाता है तो यह पेसमेकर उसको सपोर्ट करता है और जो हार्टबीट है उस को कंट्रोल करता है तो इस पेसमेकर को हमारी बॉडी में हर्ट के पास में इंस्टॉल किया जाता है अब हमको एक ऐसी बैटरी चाहिए थी जो इस पेसमेकर को लोन टाइम के लिए पावर दे सके क्योंकि बैटरी डाउन हो गई तो बार-बार तो हम ऑपरेशन करवाकर बैटरी बदलवा नहीं सकते तो न्यूक्लियर बैटरी का यूज़ इस पेसमेकर में किया गया |
बैटरी की लाइफ
लेकिन इसकी बैटरी की लाइफ ज्यादा होने की वजह से जब उस पर्सन की डेथ हो जाती थी जिसमें यह पेसमेकर लगा होता था तो डेथ के बाद में जो बैटरी में बची हुई एनर्जी थी वह एक बहुत ही बड़ी प्रॉब्लम थी क्योंकि यह जो रेडियोएक्टिव एलिमेंट है यह कई हजार सालों तक रेडियोएक्टिविटी इन्वायरमेंट में फैलाता रहता है
इसलिए पेसमेकर में आज के टाइम में लिथियम आयन बैटरी यूज में ले जाती है जैसे नासा ने अभी अपना रोल मार्च पर उतारा था तो उसमें प्लूटोनियम 238 को लेकर न्यूक्लियर बैटरी बनाई थी | जो 14 वर्ष तक उस रोवर को सप्लाई देगी
28000 वर्ष
कहने का मतलब है की इस बैटरी को हम उन जगह पर यूज में कर सकते हैं जहां पर हमें लॉन्ग बैटरी बैकअप चाहिए होता है और जिसको हम बार-बार बैटरी को बदल नहीं सकते अभी यहां पर जो रेडियोएक्टिव एलिमेंट होता है उसकी अलग-अलग लाइफ होती है किसी की 100 वर्ष तो किसी की 50 वर्ष तो पुराने टाइम में निकल 63 को काम में लिया जाता था न्यू क्लियर बैटरी में लेकिन आज के टाइम है इसको यूज़ में नहीं लिया जाता है तो यह जो टेक्नोलॉजी एंड डिवेलप होती गई और अब जो हमारे पास में न्यू टेक्नोलॉजी है उसके हिसाब से उसकी लाइफ 28000 वर्ष तक की है |
परमाणु पावर प्लांट
यह कोई मजाक नहीं है रियलिटी है और ऐसा एक्सपेरिमेंट भी हो गया है और इस बैटरी का नाम है नैनोडायमंड बैटरी यानी एनडीबी और जिस कंपनी ने इस को बनाया है उस कंपनी का नाम भी एनडीबी ही है और इंटरेस्टिंग बात यह है कि इस बैटरी को वेस्ट मटेरियल से यानी कचरे से बनाया गया है और यह वेस्ट मटेरियल है न्यूक्लियर पावर प्लांट का | न्यूक्लियर पावर प्लांट में एक न्यूक्लियर रिएक्टर लगा रहता है और इस न्यूक्लियर रिएक्टर के अंदर यूरेनियम को रखा जाता है | और जब इस रिएक्टर में यूरेनियम की फ्यूज़न की प्रोसेस शुरू होती है |
न्यूक्लियर फ्यूजन
न्यूक्लियर फ्यूजन की प्रोसेस जब शुरू होती है तो वहां पर चैन रिएक्शन होता है इस रिएक्टर के अंदर और इस चैन एक्शन को कंट्रोल करने के लिए ग्रेफाइट की रोड को काम में लिया जाता है | जो कि एक मॉडरेटर है और यह जो ग्रेफाइट के ब्लॉक होते हैं इस को कंट्रोल करने के लिए यह बहुत बड़े बड़े होते हैं |
रेडियो एक्टिव एलिमेंट
अब जो यूरेनियम है वह एक रेडियो एक्टिव एलिमेंट है जिसकी एनर्जी बहुत ही ज्यादा खतरनाक है तो यह ग्रैफाइटिस यूरेनियम के कोंटेक्ट में आने से ही यह भी रेडियो एक्टिव बन जाता है अब जब इस ग्रेफाइट को वेस्ट मटेरियल के तौर पर बाहर निकाला जाता है तो इसको हम खुला नहीं छोड़ सकते क्योंकि यह कई हजार सालों तक अपनी रेडियो एक्टिविटी इन्वायरमेंट में फैलाता रहेगा जिसका साइड इफेक्ट भी बहुत है तो इसको एक कार्बन की कोर के अंदर पैक किया जाता है और फिर एक से एक जगह पर रख दिया जाता है तो यह जो वेस्ट है यह बहुत बड़ी प्रॉब्लम बनता जा रहा है न्यूक्लियर पावर प्लांट में क्योंकि इसका करें क्या यह सबसे बड़ी समस्या है तो साइंटिस्ट नहीं यहां पर बहुत ही जबरदस्त दिमाग लगाया और सोचा कि यह जो ग्रेफाइट है इसके पास में रेडियो एक्टिव किरण है इसका मतलब इसके पास में एनर्जी तो है |
रेडियो एक्टिव किरण से बिजली
तो क्यों ना हम इस रेडियो एक्टिव किरण को ही डायरेक्ट इलेक्ट्रिसिटी में बदल दे तो हमें कोई न्यूक्लियर रिएक्टर की भी जरूरत नहीं पड़ेगी | अब साइंटिस्ट ने इस ग्रेफाइट को सही से देखा तो इसमें हमें देखा कार्बन 14 और इस कार्बन फोर्टीन को इस वेस्ट से बाहर निकाला और लो प्रेशर और हाई टेंपरेचर पर जब यह अपनी गैस फॉर्म में होता है तो इस कार्बन 14 को बदल दिया गया डायमंड के अंदर |
नैनोडायमंड: रेडियो एक्टिव डायमंड
अब यह जो डायमंड है यह हमारे नॉर्मल डायमंड जैसा नहीं है यह रेडियो एक्टिव डायमंड है तो यह जो कार्बन 14 है ना इसके पास में एक बेटा डिकेन इलेक्ट्रॉन है इसका मतलब इस डायमंड के अंदर यह कार्बन 14 ही है जो एनर्जी सप्लाई करेगा और यह जो कार्बन 14 है ना इसकी आदि जिंदगी 5700 वर्ष तक की है | यह इतने साल के बाद में तो अपनी हाफ एनर्जी ही रिलीज कर पाएगा शायद यह आपके लिए थोड़ा कॉम्प्लिकेटेड हो गया होगा लेकिन डोंट वरी हमें बैटरी बनानी नहीं है बस हमें देखना है कि यह काम कैसे करती है | अब यह डायमंड तो रेडियोएक्टिव एलिमेंट है तो इसके बाहर की तरफ छोटे-छोटे नैनोडायमंड से नॉन रेडियोएक्टिव एलिमेंट से कवर कर दिया जाता है | इसलिए इस बैटरी का नाम है नैनोडायमंड बैटरी अब यह जो बाहर की तरफ जो नैनोडायमंड है यह जो अंदर रेडियोएक्टिव एलिमेंट कार्बन 14 की रेडियो एक्टिव रेस की जो एनर्जी है | उसको बहुत अच्छे से सोख लेते हैं और इसको इलेक्ट्रिक एनर्जी में कन्वर्ट कर देते हैं | और इसके बाद में इस बैटरी को खतोरतम नॉन रेडियोएक्टिव एलिमेंट से पैक कर दिया जाता है ताकि कोई भी रेडिएशन बाहर की तरफ ना आए जिससे हमें कोई नुकसान नहीं होगा | तो हम कह सकते हैं कि यह बैटरी ग्रीन एनर्जी को सपोर्ट करती है क्योंकि जब रेडियोएक्टिव एलिमेंट की लाइफ खत्म हो जाएगी तो उसमें कुछ भी नहीं बचेगा तो यह इन्वायरमेंट में पूरा घुल जाएगा और एकदम सुरक्षित होगा हमारे लिए और हमारे वातावरण के लिए |
प्रॉब्लम
लेकिन इस बैटरी में अभी कुछ प्रॉब्लम से भी है इस बैटरी के ऊपर ही देख सकते हो इसके ऊपर लिखा है इसके पावर कैपेसिटी जो है अभी बहुत कम है 100 माइक्रोवाट पर यह बैटरी कोई बहुत ज्यादा बड़ी नहीं है साइज में बहुत ही छोटी सी बैटरी है तो हमारे स्मार्टफोन लैपटॉप वॉच या फिर जो भी मेडिकल इक्विपमेंट है जैसे पेसमेकर इनके लिए बहुत ही फिट है यह अब यह जो एनडीबी कंपनी है इसका तो यही टारगेट है कि 2023 तक यह कमर्शियली अवेलेबल हो जाएगी जिसमें यह स्पेस मिशन सेटेलाइट इन में यूज करने लग जाएंगे और जब यह कमर्शियली यूज होने लग जाएगी तो कुछ टाइम में हमारे पास में भी बहुत जल्दी आ जाएगी और इस बैटरी की कॉस्ट भी ज्यादा नहीं होने वाली है और यह हमारे लिए एक दम से है कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है इसका |
लेकिन अभी मैंने कहा कि इस बैटरी की पावर कैपेसिटी अभी कम है तो जब यह सही तरीके से मार्केट में आ जाएगी तो हमारे जो भी इलेक्ट्रिक व्हीकल है उनको हमें व्हीकल की कंप्लीट लाइफ में कभी चार्ज नहीं करना पड़ेगा और ऐसा भी कहा जा रहा है कि जो इलेक्ट्रिक व्हीकल है जिनमें यह बैटरी लगी हुई है तो यदि कभी ग्रिड की पावर सप्लाई में कमी पड़ जाती है तो यह कार की बैटरी को हम ग्रिड से जोड़कर ग्रिड में सप्लाई भी कर सकते हैं |
परमाणु ऊर्जा
अब यह जो नैनोडायमंड बैटरी है यह एक न्यूक्लियर एनर्जी का ही पार्ट है लेकिन ऐसी बैटरी अभी अवेलेबल है जिसमें किसी और रेडियोएक्टिव एलिमेंट को लेकर इलेक्ट्रिसिटी जनरेट की जा रही है और उनके लाइट भी बहुत ज्यादा है जैसे मैंने नासा के रोवर का आपको एग्जांपल दिया था पर वह अभी हमारे पर्सनल यूज़ के लिए नहीं है सिर्फ कमर्शियल यूज़ के लिए ही है लेकिन यदि यह टेक्नोलॉजी सही से डेवलप हो गई तो आने वाले 10 सालों के अंदर हमारे पास में पहुंच जाएगी तो आपको क्या लगता है इस बैटरी का बेस्ट यूजर्स क्या है? और क्या यह बैटरी फील्ड में एक बहुत बड़ा रिवॉल्यूशन है? कमेंट में जरूर बताना और अगर आपको यह पोस्ट पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर साझा करना |
धन्यवाद |
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